Sunday, October 19, 2014

मायड़ भाषा राजस्थानी के प्रचार - प्रसार में एक और क़दम.

मायड़ भाषा राजस्थानी के प्रचार - प्रसार में
एक और क़दम........
आज सुबह - सुबह हनुमानगढ़ - सूरतगढ़ रोड पर स्थित जिला कारागृह के सामने यूरी हैयर सैलून के संचालक योगेश सैन को मायड़ भाषा राजस्थानी के प्रचार प्रसार के लिए केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से 2012 में पुरस्कृत मेरी पुस्तक " बाळपणै री बातां" (राजस्थानी बाल संस्मरण) तथा मेरे द्वारा संपादित बच्चों की राजस्थानी तिमाही पत्रिका " पारस मणि" का नवीन अंक भेंट में दिया.
सैलून के संचालक योगेश से मैंने एक दिन पूछा कि आपकी दुकान में दीवार घड़ी क्यों नहीं है?
तब उसने बताया कि कटिंग या शेव के लिए इंतज़ार करने वाला ग्राहक घड़ी में समय देखकर चला जाता कि इतना टाइम हो गया फिर भी बारी नहीं आई. इसलिए दीवार घड़ी यहां से हटा दी. खाली बैठे-बैठे टाइम कैसे कटे?
इसी प्रश्न के उत्तर में मुझे एक आइडिया आया कि जब तक ग्राहक की शेव/कटिंग के लिए बारी नहीं आए , तब तक वह क़िताब या पत्रिका पढ़े. मायड़ भाषा राजस्थानी जन- जन तक पठन में आए. आम आदमी तक राजस्थानी भाषा पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम और क्या हो सकता है. टाइम पास का टाइम पास और प्रचार का प्रचार.

Saturday, October 18, 2014

टाबरां री राजस्थानी तिमाही पत्रिका " पारस मणि "



टाबरां री राजस्थानी तिमाही पत्रिका " पारस मणि " द्वितीय अंक

पत्रिका पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.

https://drive.google.com/file/d/0ByTajysgN_aDSEs0cXh5ZnNMbVE/edit?usp=sharing